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500 में 500: एक प्रेरणा या चर्चा का विषय?

"500 में 500: एक प्रेरणा या चर्चा का विषय?"

मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा आयोजित कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षा के परिणामों में सिंगरौली जिले की बेटी प्रजा जायसवाल ने 500 में 500 अंक प्राप्त कर पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान हासिल किया है। साथ ही सीधी जिले की मानसी साहू ने 497 अंक प्राप्त कर प्रदेश में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया। यह दोनों बेटियाँ न केवल अपने परिवार, स्कूल और जिले का नाम रोशन कर रही हैं, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए गौरव का विषय बनी हैं।

बिना किसी संदेह के, यह उपलब्धि प्रशंसनीय है। ऐसे समय में जब छात्र कई तरह के मानसिक और शैक्षणिक दबाव से गुजरते हैं, किसी का शत-प्रतिशत अंक लाना एक अद्वितीय परिश्रम, अनुशासन और समर्पण का परिणाम है। हम प्रजा और मानसी को तहे दिल से बधाई देते हैं, और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।

लेकिन सवाल यह है कि क्या 500 में 500 वास्तव में संभव है?

यह प्रश्न मन में आना स्वाभाविक है। खासकर तब, जब हम यह जानते हैं कि हिंदी, अंग्रेज़ी और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में मूल्यांकन पूर्णतः वस्तुनिष्ठ नहीं होता। इन विषयों में निबंध, प्रश्नोत्तर, विश्लेषण, भाषा-शैली और अभिव्यक्ति का महत्व होता है, जो स्वाभाविक रूप से एक मूल्यांकनकर्ता के दृष्टिकोण पर आधारित होता है। ऐसे में पूर्ण अंक मिलना एक असामान्य बात ज़रूर मानी जाती है।

क्या इसका अर्थ यह है कि यह गलत है?

बिलकुल नहीं। अगर छात्रा ने उत्कृष्ट उत्तर लिखे, भाषा की स्पष्टता, अभिव्यक्ति की सुंदरता और विषय की गहराई को सही रूप में प्रस्तुत किया, और अगर मूल्यांकनकर्ता को लगा कि इससे बेहतर उत्तर नहीं हो सकता, तो पूर्ण अंक देना गलत नहीं है। यह निर्णय बोर्ड की उत्तरपुस्तिका जांच नीति पर भी निर्भर करता है। कई बार बोर्ड्स अपने टॉपर्स को प्रेरणास्पद रूप में प्रस्तुत करने के लिए मॉडरेशन या ग्रेस मार्क्स भी जोड़ते हैं, जो तकनीकी रूप से वैध होते हैं।

क्या यह अन्य छात्रों के लिए अनुचित है?

कुछ हद तक यह प्रश्न उचित है, क्योंकि जब मूल्यांकन का आधार पूर्णतः वस्तुनिष्ठ नहीं होता, तब कुछ छात्रों को लगता है कि उनके भी उत्तर अच्छे थे, फिर भी पूर्ण अंक नहीं मिले। ऐसे में एक पारदर्शी मूल्यांकन प्रणाली और उत्तर कुंजी (Answer Key) की सार्वजनिक उपलब्धता इस तरह की आशंकाओं को दूर कर सकती है।

एक दूसरा दृष्टिकोण – प्रेरणा का स्रोत

हमें यह भी समझना होगा कि ऐसे परिणामों का एक सकारात्मक पक्ष भी होता है। जब कोई छात्रा अपने कठिन परिश्रम और समर्पण के बल पर सर्वोच्च स्थान प्राप्त करती है, तो वह अन्य छात्रों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बनती है। यह दिखाता है कि एक छोटे जिले या सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाली लड़की भी अगर ठान ले तो किसी भी ऊँचाई तक पहुँच सकती है।

प्रजा और मानसी जैसी बेटियाँ समाज के उन हिस्सों से आती हैं, जहाँ संसाधनों की सीमाएं होती हैं, लेकिन सपनों की कोई सीमा नहीं होती। ऐसे में उनकी सफलता केवल अंक नहीं, बल्कि संघर्ष, आत्मविश्वास और निरंतर अभ्यास की कहानी भी है।

बोर्ड्स को क्या करना चाहिए?

इस पूरे संदर्भ में यह आवश्यक हो जाता है कि परीक्षा बोर्ड्स समय-समय पर अपनी मूल्यांकन नीतियों को और अधिक पारदर्शी बनाएं। टॉपर्स की कॉपीज (उत्तर पुस्तिकाएं) सार्वजनिक की जा सकती हैं ताकि बाकी छात्र भी यह देख सकें कि किस स्तर का उत्तर शत-प्रतिशत अंक पाने के योग्य होता है।

साथ ही, बोर्ड्स को यह भी देखना चाहिए कि टॉप स्कोर्स कहीं प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ न बन जाएं। गुणवत्ता की शिक्षा, संपूर्ण व्यक्तित्व विकास, और रचनात्मकता को भी उतना ही महत्व मिलना चाहिए जितना अंकों को मिलता है।

अंत में – सच्चाई, संभावना और संतुलन

500 में 500 लाना यकीनन एक चौंकाने वाली उपलब्धि है — नकारा नहीं जा सकता। क्या यह पूरी तरह प्राकृतिक है? शायद नहीं, लेकिन क्या यह पूरी तरह अनुचित है? यह भी नहीं कहा जा सकता। सच यह है कि शिक्षा व्यवस्था में कई स्तर हैं – तैयारी, मूल्यांकन, और प्रस्तुति – और हर स्तर पर पारदर्शिता, ईमानदारी और प्रोत्साहन का संतुलन आवश्यक है।

हम प्रजा और मानसी को एक बार फिर हार्दिक बधाई देते हैं। वे जो कर सकीं, वह बहुतों के लिए प्रेरणा है। लेकिन यह भी ज़रूरी है कि इस प्रेरणा के साथ-साथ हम शिक्षा व्यवस्था को इतना मज़बूत बनाएं कि हर विद्यार्थी को लगे कि उसकी मेहनत का मूल्यांकन निष्पक्ष और सटीक हुआ है।


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Last Updated

May 6th, 2025 12:54 PM

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Daily Current Affairs

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Taiyari Team

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